मार्क जुकरबर्ग का U-Turn! AI रिसर्चर्स को करोड़ों में नौकरी देने के बाद, अब 600 कर्मचारियों की नौकरी गयी

मार्क जुकरबर्ग का U-Turn! AI रिसर्चर्स को करोड़ों में नौकरी देने के बाद, अब 600 कर्मचारियों की नौकरी गयी

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दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक, मेटा, इन दिनों सुर्खियों में है। लेकिन इस बार सुर्खियों की वजह कोई नया आविष्कार या मुनाफा नहीं, बल्कि कंपनी का वह फैसला है जिसने सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कंपनी ने हाल ही में अपने सुपरइंटेलिजेंस लैब्स यूनिट में काम कर रहे 600 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। यह वही कंपनी है जिसने कुछ ही महीने पहले दुनिया भर के टॉप AI रिसर्चर्स को 100 मिलियन डॉलर यानी करीब 80 करोड़ रुपये से ज्यादा के पैकेज पर नौकरी देने का ऐलान किया था। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर यह U-Turn क्यों?

यह खबर पूरे टेक जगत में एक बड़ा भूचाल लेकर आई है। कर्मचारी हैरान हैं, विश्लेषक सवाल पूछ रहे हैं, और शेयर बाजार में भी इसके असर देखने को मिल रहे हैं। कंपनी के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने अपने एक आंतरिक मेमो में इस फैसले के पीछे की वजह बताई है। आइए, आपको इस पूरी कहानी की डीटेल में लेकर चलते हैं और समझते हैं कि आखिर क्यों एक तरफ तो मेटा की नौकरियां AI के क्षेत्र में बढ़ रही थीं, और दूसरी तरफ अचानक इतने लोगों के हाथ से मेटा की नौकरियां छिन गईं।

क्या थी AI रिसर्चर्स को ऊंची कीमत चुकाने की वजह?

कुछ समय पहले की बात है। मेटा ने दुनिया भर में एक मुहिम शुरू की थी। इस मुहिम का मकसद था आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन दिमागों को अपनी टीम में शामिल करना। कंपनी ने AI की दुनिया में एक नई लड़ाई शुरू कर दी थी। इस लड़ाई में उसके सामने थी बड़ी कंपनियां जैसे Google, Microsoft, और OpenAI।

इस लड़ाई को जीतने के लिए मेटा को दुनिया के बेस्ट AI एक्सपर्ट्स चाहिए थे। और इन एक्सपर्ट्स को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कंपनी ने जो पैकेज दिए, वो इतिहास में दर्ज हो गए। कुछ रिसर्चर्स को तो 100 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा का पैकेज ऑफर किया गया। यह रकम इतनी बड़ी है कि आम इंसान के लिए इसे सोच पाना भी मुश्किल है।

इन मेटा की नौकरियां सिर्फ पैसे की वजह से ही आकर्षक नहीं थीं। कंपनी ने इन रिसर्चर्स को एक सपना दिखाया। वह सपना था “सुपरइंटेलिजेंस” यानी ऐसी AI तकनीक बनाने का जो इंसानी दिमाग से भी आगे निकल जाए। मेटा का लक्ष्य था ऐसी AI सिस्टम बनाना जो खुद से सीख सके, खुद से फैसले ले सके, और दुनिया की सबसे जटिल समस्याओं को हल कर सके। इस सपने के लिए कंपनी ने कोई कोताही नहीं की। इसी दिशा में काम करने के लिए ‘सुपरइंटेलिजेंस लैब्स’ नाम की एक अलग यूनिट बनाई गई। लग रहा था कि AI के क्षेत्र में मेटा की नौकरियां भविष्य के लिए सबसे सुरक्षित और बेहतरीन मेटा की नौकरियां हैं।

तूफान से पहले की शांति: क्या संकेत मिल रहे थे?

लेकिन जिस तेजी से मेटा ने AI रिसर्चर्स को हायर किया, उसी तेजी से दुनिया की आर्थिक हालात भी बदलने लगे। महंगाई बढ़ने लगी, दुनिया के कई देशों में मंदी के आसार दिखाई देने लगे। इन हालातों का असर टेक कंपनियों पर सबसे ज्यादा पड़ा। एक के बाद एक, कंपनियां अपने खर्चे कम करने लगीं। और खर्चा कम करने का सबसे आसान तरीका क्या होता है? नौकरियां कम करना।

माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, गूगल जैसी दिग्गज कंपनियों ने भी हजारों की संख्या में लोगों को नौकरी से निकाला। ऐसे में सवाल तो मेटा के बारे में भी उठने ही थे। पिछले साल भी मेटा ने बड़े पैमाने पर लेयऑफ किए थे। तब भी लोगों ने सोचा था कि अब कंपनी संभल जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

कंपनी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों से ही कर्मचारियों के मन में एक डर बैठा हुआ था। हर कोई यही सोच रहा था कि कहीं अगली बारी उसकी न हो। AI लैब्स में काम करने वाले कुछ कर्मचारियों को भी अंदेशा था कि कंपनी की रणनीति में बदलाव आ सकता है। लेकिन उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यह बदलाव इतना बड़ा और इतना अचानक होगा। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जिन मेटा की नौकरियां उन्हें सबसे सुरक्षित लग रही थीं, वही मेटा की नौकरियां अचानक खत्म हो जाएंगी।

वह काला दिन: जब 600 लोगों की नौकरी चली गई

आखिरकार वह दिन आ ही गया। एक सुबह, जब कर्मचारी अपने-अपने ऑफिस और घर से काम पर लगे हुए थे, तभी उनके इनबॉक्स में एक ईमेल आया। यह कोई साधारण ईमेल नहीं था। यह ईमेल था कंपनी के सीईओ मार्क जुकरबर्ग का। इस ईमेल को पढ़ते ही सैकड़ों लोगों का दिल एक पल के लिए रुक सा गया।

मेमो में जुकरबर्ग ने लिखा कि कंपनी को अपनी “एफिशिएंसी” यानी कार्यक्षमता बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कंपनी को अब “फ्लैटर स्ट्रक्चर” की तरफ बढ़ना होगा। इसका सीधा सा मतलब था – कम लोग, कम लेयर्स, और ज्यादा काम। इसी नई रणनीति के तहत सुपरइंटेलिजेंस लैब्स यूनिट में 600 लोगों की मेटा की नौकरियां खत्म कर दी गईं।

जिन लोगों को नौकरी से निकाला गया, उनमें ज्यादातर वो लोग थे जो टेक्निकल रोल में नहीं थे। इनमें प्रोजेक्ट मैनेजर, कंटेंट राइटर, एचआर, और अन्य सपोर्ट स्टाफ शामिल थे। यह साफ दिखा रहा था कि कंपनी अब सिर्फ और सिर्फ कोर टेक्नोलॉजी पर फोकस करना चाहती है। बाकी सभी चीजों को वह कम करने पर तुली हुई है।

नौकरी गए हुए लोगों के लिए कंपनी ने कुछ मदद का ऐलान किया। जैसे कि सेवरेंस पे (छंटनी के बाद का मुआवजा), हेल्थ इंश्योरेंश को कुछ और समय तक जारी रखना, और करियर काउंसलिंग की सुविधा। लेकिन एक कर्मचारी के लिए अचानक नौकरी चले जाने का जो सदमा होता है, वह किसी मुआवजे से पूरा नहीं हो पाता। खासकर तब, जब कुछ महीने पहले ही कंपनी ने दूसरों को करोड़ों रुपये का पैकेज देकर बुलाया हो।

कर्मचारियों पर क्या बीती? एक डरावना सच

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे ज्यादा असर उन 600 कर्मचारियों और उनके परिवारों पर पड़ा है। एक कर्मचारी, जिसने नाम नहीं बताने की शर्त पर बातचीत की, ने कहा, “यह एक झटका था। हमें लग रहा था कि AI का भविष्य बहुत उज्ज्वल है और हम सब एक बड़े मकसद के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन अचानक सब कुछ खत्म। मेरे पास दो बच्चों की जिम्मेदारी है, EMI चुकाना है। अब आगे क्या होगा, पता नहीं।”

एक और पूर्व कर्मचारी ने बताया, “सबसे बुरी बात यह है कि जिस प्रोजेक्ट पर हम लोग दिन-रात मेहनत कर रहे थे, उसी प्रोजेक्ट के लिए हमें निकाल दिया गया। कंपनी ने हमें बताया कि हमारी भूमिका अब जरूरी नहीं रह गई है। यह सुनना बहुत दर्दनाक था।”

यह साफ है कि यह फैसला सैकड़ों लोगों के लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी बन गया है। जिन मेटा की नौकरियां उन्हें गर्व की अनुभूति कराती थीं, आज वही मेटा की नौकरियां उनके सामने एक बड़ा सवाल बनकर खड़ी हैं।

मार्क जुकरबर्ग के मेमो में क्या था? पूरी जानकारी

मार्क जुकरबर्ग के उस मेमो को पूरी तरह से समझना बहुत जरूरी है, जिसने सैकड़ों लोगों की जिंदगी बदल दी। उन्होंने अपने मेमो की शुरुआत कंपनी के नए लक्ष्यों के साथ की। उन्होंने कहा कि मेटा अब “द एज ऑफ AI” में प्रवेश कर चुकी है और उसे इसके लिए तैयार रहना होगा।

जुकरबर्ग ने लिखा, “हमारा लक्ष्य दुनिया की सबसे एडवांस्ड AI टेक्नोलॉजी बनाना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें अपने रिसोर्सेज को बहुत ही स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल करना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी हर एक टीम, हर एक व्यक्ति, सीधे तौर पर इस लक्ष्य में योगदान दे रहा हो।”

उन्होंने आगे लिखा, “इसी वजह से हमने सुपरइंटेलिजेंस लैब्स की टीम का एक रिव्यू किया। इस रिव्यू में हमने पाया कि टीम की स्ट्रक्चर को और लीन (दुबला) और एफिशिएंट बनाने की जरूरत है। इसी के चलते हमें 600 पदों को खत्म करने का मुश्किल फैसला लेना पड़ा है।”

जुकरबर्ग ने यह जरूर कहा कि यह फैसला कंपनी के भविष्य के लिए जरूरी था। उन्होंने नौकरी गए हुए कर्मचारियों के योगदान के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि कंपनी उनके ट्रांजिशन में पूरी मदद करेगी। लेकिन इस मेमो से एक बात साफ झलक रही थी – कंपनी के लिए अब सिर्फ AI का कोर रिसर्च मायने रखता है, बाकी सब कुछ गौण है। इसी सोच ने इन मेटा की नौकरियां खत्म कर दीं।

टेक इंडस्ट्री पर क्या पड़ेगा असर?

मेटा का यह कदम सिर्फ एक कंपनी का फैसला भर नहीं है। यह पूरी टेक इंडस्ट्री के लिए एक संदेश है। इससे यह साफ हो गया है कि AI की दौड़ में कंपनियां किसी भी हद तक जा सकती हैं। वह एक तरफ करोड़ों रुपये खर्च करके नए टैलेंट को ला रही हैं, तो दूसरी तरफ पुराने कर्मचारियों की नौकरियां भी खत्म कर रही हैं।

इस घटना के बाद दूसरी टेक कंपनियों में भी डर का माहौल है। कर्मचारी सोच रहे हैं कि कहीं उनकी कंपनी भी ऐसा ही कोई कदम न उठा ले। इससे कर्मचारियों के मनोबल पर बुरा असर पड़ रहा है। लोग अब यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या टेक इंडस्ट्री में नौकरी वाकई सुरक्षित है?

वहीं, इन्वेस्टर्स और शेयर होल्डर्स ने मेटा के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्हें लगता है कि इससे कंपनी की कार्यक्षमता बढ़ेगी और लागत कम होगी, जिससे आने वाले समय में मुनाफा बढ़ेगा। मेटा के शेयर की कीमतों में इस खबर के बाद थोड़ी बढ़ोतरी भी देखी गई। यह साबित करता है कि बाजार के लिए मुनाफा ही सब कुछ है, चाहे उसके लिए मेटा की नौकरियां ही क्यों न खत्म करनी पड़ें।

आगे का रास्ता: क्या है मेटा की अगली योजना?

अब सवाल यह है कि आगे क्या? मेटा ने साफ कर दिया है कि उसका फोकस पूरी तरह से AI पर है। सुपरइंटेलिजेंस लैब्स अब भी कंपनी का एक अहम हिस्सा है, लेकिन अब वहां सिर्फ वही लोग बचे हैं जो सीधे तौर पर AI के टेक्निकल रिसर्च से जुड़े हुए हैं। कंपनी AI मॉडल्स बनाने, उन्हें ट्रेन करने, और नई ब्रेकथ्रू टेक्नोलॉजी पर काम करने में जुट गई है।

विश्लेषकों का मानना है कि मेटा जल्द ही अपने AI प्रोडक्ट्स को लॉन्च कर सकती है। ये प्रोडक्ट्स सोशल मीडिया से लेकर वर्चुअल रियलिटी तक में इस्तेमाल हो सकते हैं। कंपनी का मेटावर्स का सपना भी अब AI के बिना पूरा नहीं हो सकता। ऐसे में, भविष्य में टेक्निकal AI रिसर्चर्स की डिमांड और बढ़ सकती है।

लेकिन सपोर्ट स्टाफ और दूसरी भूमिकाओं के लिए हालात अभी चुनौतीपूर्ण ही रहने वाले हैं। कंपनियां ऑटोमेशन और AI टूल्स का इस्तेमाल करके इन मेटा की नौकरियां खुद ही करने की कोशिश करेंगी। इसलिए, टेक इंडस्ट्री में काम कर रहे लोगों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे लगातार नई स्किल्स सीखते रहें। उन्हें अपने आप को ऐसे तैयार करना होगा कि वह AI के इस दौर में भी अपनी जगह बना सकें। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो भविष्य में और भी मेटा की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।

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